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नये साल का उगता सूरज
 
वही नया जो लगता था कल
आज पुराना लगता है
अरे बात थी अभी अभी की
वही फसाना लगता हैं

सुबह शाम के मीठे पल छिन
सुख दुख में जो बीते गिन गिन
छूट गये कब इन हाथों से
मोह न टूटा उन बातों से
पर रोके कब रुका समय अब
गया जमाना लगता है

द्वार खड़ा वो आगन्तुक है
जागा उसके प्रति कौतुक है
न जाने क्या साथ में लाया
मन में आशा अलख जगाया
बेघर बिखर गये थे सपने
नया ठिकाना लगता है

समय चक्र अनमोल है साथी
नये वर्ष में नई है थाती
कोरी चादर जैसी पावन
रचें कहानी सब मनभावन
नये जोश में मन को सुखमय
राह बनाना लगता है

जीवन तो आना जाना है
जो सुख दुख हो सह जाना है
आगत का स्वागत ही विधि है
नव संचार ही जीवन निधि है
नये साल का, उगता सूरज
सुखद सुहाना लगता है

- अलका प्रमोद      
१ जनवरी २०१७

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