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नया कैलेंडर नये साल का
 
नया कलैन्डर नये साल का
भिगो रहा मुझको यादों से।

छत के ऊपर धूप है बोली
मैं तेरे घर पर आयी हूँ
नये सुहाने सपने ले कर
तेरे आँगन में छायी हूँ

संध्या का प्यारा सा कोना
उतर रहा छत के काँधों से।

देहरी पर बैठी फगुनाहट
रंग अबीर से खेल रही है
इसके-उसके जिसके-तिसके
टेसू का रंग घोल रही है

नेह बरसता तन के ऊपर
झाँके नयनों के कोरों से।

बैठ कबूतर बालकनी में
गुटर गुटर की तान छेड़ता
बिखरे दाने पड़े बहुत हैं
उठा चोंच में विहँस खेलता

कोना कोना घर द्वारे का
महके क्यारी के पौधों से।

मेजपोश के टँके कँगूरे
पूछा करते हैं पर्दों से
फीके पड़ते रंगों को सब
अल्लसुबह टोका करते हैं

गंध उड़ाता पवन झकोरा
महक रहा कोनों कोनों से।

- आभा सक्सेना
१ जनवरी २०१७

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