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षोडशी हुई सदी
 
ठिठक कर रुक मत जाना
समय के बटोही होगा नव प्रभात
कुँवारी गन्ध बिखरेगी
रात भीजेगी ओस के इत्र से
नदी मन भर नहायेगी
सदी कल षोडशी हो जायेगी
नूतन पल की प्रतीक्षा में
आतुर किशोरों के सपने
बन चुके होंगे अलाव
सुगंध की कलियाँ खिलेंगी
खड़े होंगे असंख्य सूर्यमुखी जन
गुलाबी-हरी-नीली विविधवर्णी
विभिन्न मुद्राओं में
लिए बंदनवार
ओ मेरे आलोकधर्मी मन
षोडशी का शुभ सन्देश ले आना
फिर बाँटना बताशे की तरह
शुभकामनाएँ नववर्ष की।

- भारतेन्दु मिश्र 
१ जनवरी २०१७

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