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फिर साल बदला है
 
हर हाल में जीते रहो।
चलते-चलो आगे बढ़ो।

शायद कहीं सुख भी मिले
इस आस में जीते रहो।

नीड़ों में पंछी छुप गये
अब तुम भी अपने घर चलो।

मिट जायेगा शिकवा गिला
अपनी कहो, मेरी सुनो।

हर बात बीती भूल कर
जिस से मिलो, हँस कर मिलो।

फिर साल बदला है "ख़याल"
फिर से नया सपना बुनो।

- सतपाल ख़याल 
१ जनवरी २०१७

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