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साल मुबारक
 
हर पल ख़स्ता-हाल मुबारक
नया नया ये साल मुबारक 
 
मिले अगर सूखी रोटी पर
भरी कटोरी  दाल  मुबारक
 
फँसे हुऐ हो जिसमें अब तक
वादों का ये जाल मुबारक
 
नीड़ बना आख़िर को जिस पर
पंछी को वो डाल मुबारक 
 
हम तो फिर भी बचे रहेंगे
तुमको अपनी चाल मुबारक

- प्रदीप कान्त
१ जनवरी २०१७

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