अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

साल नया
 
बहती अविरल धार समय की, बतलाता है साल नया।
दस्तक देतीं दर पे खुशियाँ, लो आया है साल नया।

पात झरे तो कोंपल निकली, दुःख भला कब ठहरा है।
कालिख़ धो दो अँधियारों की, उजियारा है साल नया।

जाति-धर्म के झगड़े भूलो, अब सपने साकार करो
भारत माँ से संतानों का, इक वादा है साल नया।

चाह रहीं आकाश उड़ानें, और न बाँधों अब इनको
मजबूती से डैने अपने, फैलाना है साल नया।

छूट गए जो आलस करते, काम अधूरे थे हमसे
संकल्प इरादों को फिर से, दुहराता है साल नया।

बीता साल समेटे किस्से, खट्टे मीठे दामन में
जीवन-पथ में जोश नया अब, भर लाया है साल नया।

थोड़ा लगता अनजाना सा, थोड़ा पहचाना सा है
अभी अजनबी सा लगता है, पर अपना है साल नया।

- अनीता मण्डा
१ जनवरी २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter