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साल नया |
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बहती अविरल धार समय की,
बतलाता है साल नया।
दस्तक देतीं दर पे खुशियाँ, लो आया है साल नया।
पात झरे तो कोंपल निकली, दुःख भला कब ठहरा है।
कालिख़ धो दो अँधियारों की, उजियारा है साल नया।
जाति-धर्म के झगड़े भूलो, अब सपने साकार करो
भारत माँ से संतानों का, इक वादा है साल नया।
चाह रहीं आकाश उड़ानें, और न बाँधों अब इनको
मजबूती से डैने अपने, फैलाना है साल नया।
छूट गए जो आलस करते, काम अधूरे थे हमसे
संकल्प इरादों को फिर से, दुहराता है साल नया।
बीता साल समेटे किस्से, खट्टे मीठे दामन में
जीवन-पथ में जोश नया अब, भर लाया है साल नया।
थोड़ा लगता अनजाना सा, थोड़ा पहचाना सा है
अभी अजनबी सा लगता है, पर अपना है साल नया।
- अनीता मण्डा
१ जनवरी २०१७ |
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