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हाथ हमारे छोटे-छोटे
     

 





 

 


 




 


दूध-दही के गागर ऊँचे
हाथ हमारे छोटे-छोटे

सुख-सुविधा के घर में डाले
तुमने भारी-भारी ताले
हमको छूँछी छाछ दिखाकर
तुमने सब नवनीत सँभाले

खा जाएँगे इक दिन तुमको
शाप हमारे मोटे-मोटे

सारा बचपन छील गए जो
गेंद हमारी लील गए जो
हम भी उनका फन नाथेंगे
जीवन-रस कर नील गये जो

अरे! कभी बदलेंगे आख़िर
भाग हमारे खोटे-खोटे

अपना कद ढकने को आतुर
ओ रे! वैभव के शकटासुर
इतने पिए पयोधर विष के
हैं कटु और मुखर अपने सुर

बड़े-बड़े दिग्गज भी इक दिन
पाँव हमारे लोटे-लोटे

- पंकज परिमल
१८ अगस्त २०१४

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