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बजा दो प्रिय बाँसुरी
     

 





 

 


 




 


राग भरे गीतों में जैसे आसावरी
एक बार मधुमय, बजा दो प्रिय बाँसुरी

आओ हे मधुसूदन, पावन कर दो तन-मन
ऐसा संवाद रचो हर्षित हो सारे जन
संवर जाये अंतरतम -
साधों की पाँखुरी

कलुषित हो गई आज गोपी की साधना
प्रेम-पुष्प दूषित हैं, अपमानित भावना
छलक उठी नैनों में
आँसू की गागरी

पल पल है लांछन का, आरोपित यह जीवन
करुणामय सिंधु, सुनो मेरी पुकार करुण
द्रौपदी-सुभद्रा सम, नाते
निभाओ -हरी!

मथुरा के उद्धारक, गोकुल के नायक तुम
गोपिका के मान तुम्हीं, जन-मन के गायक तुम
आओ नयन पथ पर-दर्शन
की प्यास भरी

कृष्ण की पुकार आज करती बसुन्धरा
जग के संरक्षक को खोजती ऋतुंवरा
कंस के समान करो
दानव संहार हरी

- पद्मा मिश्रा
१८ अगस्त २०१४

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