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बाल रूप मन मोहना
     

 





 

 


 




 


बाल-रूप मन मोहना, माखन मुख लिपटाय।
रास-रचैया साँवरा, बंसी अधर सुहाय॥

कान्हा गागर फोड़ के, ब्रज में रास रचाय।
मुरली मधुर बजाय के, राधा हिया रिझाय॥

पावन नाम कन्हाई, जन-जन रहा उचार।
श्याम-रंग जो रंग गए, भव-सागर के पार॥

कान्हा तेरी भक्ति है, जगती का आधार।
राधा-मोहन जाप से, तरे सकल संसार॥

तेरा प्रेम अराधना, दूजी चाह न मोय।
तू ही मेरा आसरा, दूजा ठौर न कोय॥

-सुशीला श्योराण ’शील’
२६ अगस्त २०१३

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