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जग वंशी की टेर सुनेगा
     

 





 

 


 




 


रवि बन आलोकित कर देगी गीता पू्र्ण मही
जग वंशी की टेर सुनेगा
देर सबेर सही

पूँजीवादी दलदल हो या साम्यवाद की खाई
इनमें फँसकर दुनिया ने कब अपनी मंजिल पाई
कर्मयोग की राह कृष्ण की
वाणी दिखा रही

बन्धु–भतीजावाद, लोभ को और नहीं ढोना है
होकरके मोहांध न्याय से विरत नहीं होना है
अर्जुन का गाण्डीव रहेगा
अब तो शान्त नहीं

कदम–कदम पर कड़ी परीक्षा जीवन स्वयं समर है
दैन्य–पलायन नहीं युद्ध का निश्चय अब तो दृढ़ है
जय है बागडोर जीवन की
हरि ने अगर गही

–रविशंकर मिश्र रवि
२६ अगस्त २०१३

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