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जय केशव गिरिधारी |
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जय केशव गिरिधारी माधव, पूर्ण ब्रह्म श्री कृष्ण ललाम,
मुरलीधर गोपाल मनोहर, दामोदर जय राधे श्याम !
भादों कृष्णअष्टमी की जब, मंगलमय बेला आई,
छाये घटाटोप जलधर, अंधियारी महानिशा छाई,
प्रगट हुए देवकी गर्भ से विष्णु स्वयं
संभव भगवान !
कमल नयन वदनारविन्द, अलकावली शोभा देती है,
हिय राजत वैजन्तीमाला, बरबस मन हर लेती है ,
अंग-अंग साजे आभूषण, लाजे कोटि-
कोटि शतकाम !
अद्भुत दिव्य-रूप लाख प्रभु का, हुए मुदित देवकी-वसुदेव,
करि प्रणाम बोले धीरज धर, त्राहि-त्राहि देवों के देव,
शीघ्र छिपा कर रूप चतुर्भुज, धारो बाल-
रूप छवि धाम !
बोले प्रभु "तूने हे नृपवर, पूर्व जन्म तप किया महान,
हो प्रसन्न तब पुत्र प्राप्ति के, हेतु तुम्हें दीना वरदान
मानव के दुख हर लेने को, नर शरीर
धारा तज मान!
पहुँचाओ हमको गोकुल में, अभी नन्द गृहिणी के पास,
और योगमाया-कन्या को, तुरत बदल लो रखो हुलास,
यह कह रूप चतुर्भुज ताज कर, प्रगटे बाल-
रूप भगवान !
उमड़ा प्रेम पुत्र रक्षा हित, युग-दंपत्ति हो गए अधीर,
रक्षक गण सो गए नींदवश, खुले कपाट टूटी जंजीर,
नृप वसुदेव चले गोदी में, लेकर रूप
राशि घनश्याम !
तपक-तडित ने मार्ग दिखाया, शेषनाग करते छाया,
उमड़-घुमड़ कर बहती यमुना, ने पग छू धीरज पाया,
पहुँच नन्दगृह में कन्या को, उठा लिया रख
कर घनश्याम!
कन्या ले वसुदेव पुनः पहुँचे, बंदीगृह देवकी पास,
हुए बंद पट, बाल रुदन सुन, जागे रक्षकगण संत्रास,
सुन सन्देश चला पुरुषाधम, कंस महा
पापी नादान !
रोती और बिलखती देवकी, से छीना कन्या को हाय,
पटका जभी शिला पर, छूटी कर से, गई मध्य नभ धाय,
प्रगटी अष्ट-भुजा चामुंडा, बोली करती
शब्द महान !
"कंस,मुझे तू क्या मारेगा,निज को मरा हुआ तू जान,
तुझे मारने वाले ने ले लिया, जन्म बृज में अनजान,
नहीं बचेगा अब तू उस से, वह अतुलित
बल का है धाम!
-पूर्णिमा शर्मा
२६ अगस्त २०१३ |
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