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मन के वृंदावन में
     

 





 

 


 




 


मन के
वृंदावन में फिर से मुरली तान सुनाने आजा
तेरी राधा रूठ गयी है मोहन उसे मनाने आजा

उजड़ गये
सब बाग-बगीचे बिखर गयी सारी फुलवारी
विप्र सुदामा ग्वाल-बाल सब गोकुल के सारे नर-नारी
जूझ रहे हैं सब संकट से
उनकी जान बचाने आजा।

हर पतझड़ के
बाद प्रकृति मौसम वसंत का लाती है
सूरज देता ताप, निशा शीतलता से भर जाती है
बरसों से प्यासी गलियन में
फिर से रास रचाने आजा।

इस धरती पर
कंस, दुशासन ने फिर धावा बोला है
द्रौपदियों की चीर पे फिर मनडोलों का मन डोला है
माँ की लज्जा दाँव चढ़ी है, उसकी चीर बढ़ाने आजा
तेरी राधा रूठ गयी है
मोहन उसे मनाने आजा।

-पंकज बुरहानपुरी
२६ अगस्त २०१३

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