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हे मधुसूदन हे नाथ
     

 





 

 


 




 


हे मधुसूदन हे नाथ, धरा पे आ जाओ
लिये चक्र सुदर्शन हाथ,
धरा पे आ जाओ

कौरव शक्ति बढ़ी चढ़ी है, पांडव जन की कठिन घडी है
कैसे जीयें द्रुपद सुता अब, आज लाज संकट में पड़ी है
दु:शासन के बढ़ते जाते, नित नित अत्याचार
धरा पे आ जाओ,
हम तुम्हें झुकाते माथ
धरा पे आ जाओ

जब जब पाप बढे धरती पे, पापियों का संहार करूँगा
संत जनो की रक्षा के हित युग युग में, अवतार धरुंगा
याद करो हे कृष्ण तुम्हारा गीता का इकरार
धरा पे आ जाओ
अब धरो शीश पर हाथ
धरा पे आ जाओ

कंस सरीखा पापी राजा, दुखियारा है सकल समाज
शोषण उत्पीडन को सहते, नित जीते-मरते जन आज
फिर सोया पुरुषार्थ जगाकर दूर करो व्यभिचार
धरा पे आ जाओ
हमें संभालों नाथ
धरा पे आ जाओ

-लक्ष्मीनारायण गुप्ता
२६ अगस्त २०१३

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