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जन्मे थे गोपाल
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कथा सुनाते वेद हैं, वह था द्वापर काल।
कृष्ण भाद्रपद अष्टमी, जन्में थे गोपाल।
जन्में थे गोपाल, रातआधी थी तम की,
भू पर आए ईश, मिटाने छाया गम की।
यह दिन पावन मान, पर्व सब लोग मनाते,
वह था द्वापर काल, वेद हैं कथा सुनाते।
कहते पर्व प्रधान है, भारत देश विशाल।
कृष्ण जन्म का पर्व भी, मनता है हर साल।
मनता है हर साल, झाँकियाँ जोड़ी जातीं,
हर चौराहे टांग, मटकियाँ फोड़ी जातीं।
मोहन माखनचोर, स्वांग में बालक रहते,
भारत देश विशाल, धाम पर्वों का कहते।
कहने को पटरानियाँ, थीं मोहन की आठ।
सोलह हज़ार रानियों, संग अलग थे ठाठ।
संग अलग थे ठाठ, मगर ये सब कन्याएँ,
बतलाता इतिहास, कहाईं वेद ऋचाएँ।
असुरों से उद्धार, किया इनका मोहन ने,
मुख्य रानियाँ आठ, यही वेदों के कहने।
मोहन मथुरा चल पड़े, तजकर गोकुल ग्राम।
हुई अकेली राधिका, दीवानी बिन श्याम।
दीवानी बिन श्याम, गोप, गोपी सब रोए।
भूखा सोया गाँव, नयन भर नीर भिगोए।
सूना यमुना तीर, ग्वाल, गाएँ, मुरली बिन,
नन्द यशोदा क्लांत, हुए सूने बिन मोहन।
कृष्ण जगत का मूल है, नहीं सिर्फ अवतार।
अर्जुन का यह सारथी, गीता का यह सार।
गीता का यह सार, भक्ति का भाव यही है,
युद्ध नीति का नाम, काल असुरों का भी है।
आकर्षण , चातुर्य, ज्ञान, गुण,स्रोत सुमत का
नहीं सिर्फ अवतार, मूल है कृष्ण जगत का ।
-कल्पना रामानी
२६ अगस्त २०१३ |
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