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एक प्रार्थना कान्हा से
     

 





 

 


 




 


तुम अपनी लौ संग मेरी लौ मिला दो
उजालों से कान्हा
मेरा मन खिला दो !

समाए हो सबमें पर सबसे जुदा हो
कलुष हारी विष हो मधुरतम! सुधा हो
मुझको भी जीवन का
अमृत पिला दो

उजालों से कान्हा
मेरा मन खिला दो !

कस्तूरी तुम्हीं! मैं मृगी हूँ भटकती
विजन वन में खोई फिरूँ सिर पटकती
जो चाहो मिटा दो
या देखो, जिला दो

उजालों से कान्हा
मेरा मन खिला दो !

-ज्योत्सना शर्मा
२६ अगस्त २०१३

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