ओ विप्लव के थके साथियों
विजय मिली विश्राम न समझोउदित प्रभात हुआ
फिर भी छाई चारों ओर उदासी
ऊपर मेघ भरे बैठे हैं किंतु धरा प्यासी की प्यासी
जब तक सुख के स्वप्न अधूरे
पूरा अपना काम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
पद-लोलुपता और त्याग का एकाकार नहीं होने का
दो नावों पर पग धरने से सागर पार नहीं होने का
युगारंभ के प्रथम चरण की
गतिविधि को परिणाम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
तुमने वज्र प्रहार किया था पराधीनता की छाती पर
देखो आँच न आने पाए जन जन की सौंपी थाती पर
समर शेष है सजग देश है
सचमुच युद्ध विराम न समझो
विजय मिली विश्राम न समझो
बलवीर सिंह रंग
२१ जनवरी २००८ |