देश मेरा प्यारा, दुनिया से न्यारा
धरती पे जैसे स्वर्ग है।
जां भी इसे उत्सर्ग है।
ऊँचे पहाड़ों में फूलों की घाटी।
प्यारे पठारों में खनिजों की बाटी।
माटी में मोगरा-गंध है।
बजता हवाओं में छंद है।
घन-घन घटाएँ, मुझको बुलाएँ।
हरे-भरे खेतों में सरगम बजाएँ।
बूँदों की भाषा सुरीली।
गीली हुई तीली-तीली।
जहाँ दिखे झरना, वहीं धरूँ धरना।
नदियों के पानी में चाहूँ मैं तरना।
मन ये गगन में उड़े रे।
ऐसे ये जी से जुड़े रे।
दूर मेरा देश ये गाँवों में बसता।
मुझको पुकारे है एक-एक रस्ता।
पैठा पवन मेरे पाँव में।
आना जी तू भी गाँव में।
देश मेरा प्यारा, दुनिया से न्यारा।
धरती पर जैसे स्वर्ग है।
जाँ भी इसे उत्सर्ग
- अभिरंजन कुमार
१६ अगस्त २००६ |