सिपाही खड़ा वह अडिग हिम शिखर पर
उसे आज आशिष भरी भावना दो।
नदी से छलकती हँसी उनको भेजो
लहरती फसल की उसे अर्चना दो।।
महकती कली की मधुर आस उसके
चरण में उँडेलो फटेगी उदासी।
नए अंकुरों की उसे दो उमंगे
विजय गीत की मुस्कराहट ज़रा-सी।।
तड़ित मेघ झुक कर उसे दे सहारा
कि जिसने है मस्तक धरा का उभारा।
निशा प्रात सूरज हवा चाँद तारा
उसे दे सहारा निरंतर सहारा।।
ग़लत मत समझना कि वह है अकेला
करोड़ों हैं हम सब उसी एक पीछे
उसी एक में हम अनेकों समाये
हमीं ने उसी के प्रबल प्राण सींचे।।
जहाँ बर्फ़ पड़ती हवाएँ हैं चलती
जहाँ नित्य तूफ़ान देते चुनौती
जहाँ गोलियों की ही बौछार होती
जहाँ ज़िंदगी कष्ट सहकर न रोती।।
वहाँ आज हिम्मत लगाती है पहरा
वहाँ आज इज़्ज़त विजय गीत गाए
कहो मत वहाँ पर विवश आज कोई
जहाँ आज प्रहरी सदा मुस्कराएँ।।
- मेघराज मुकुल
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