हवा में गंध है जिसकी
मधुर मकरंद है जिसकी
जो साँसों में बसे हरदम
वही तो देश मेरा है
जहाँ पर बाँस के वन में हवा सीटी बजाती है
जहाँ फागुन के आने पर कुहू कोयल उठाती है
स्वरों में सार है जिसके
दिलों में प्यार है जिसके
जो सपना सा सजे हरदम
वही तो देश मेरा है
जहाँ पर भोर तुलसी पर सुबह रोली चढ़ाती है
जहाँ पर चाँदनी पीपल से मिलकर झिलमिलाती है
जो रंगों में निखरता है
जो खुशबू सा बिखरता है
रंगोली-सा रचे हरदम
वही तो देश मेरा है
जहाँ पर लोग खुशियों को गले मिलकर मनाते हैं
जहाँ बच्चे बड़ों के पाँव छू आशीष पाते हैं
नेह के गीत जो गाए
सभी के काम जो आए
जो अपना-सा लगे हरदम
वही तो देश मेरा है
- पूर्णिमा वर्मन
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