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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
सभी कुओं में भाँग है
 

राजतंत्र निर्विघ्न चल रहा
प्रजातंत्र का स्वाँग है
बारी बारी चखकर देखा
सभी कुओं में भाँग है

जाति धरम की घुट्टी देकर
पाला जाता है
ड्राप पोलियो का पिलवाकर
टाला जाता है

हाथ पैर मजबूत भले हों
किंतु सोच विकलांग है

जिसकी लाठी भैंस उसी की
पहले जैसे हैं
चोर चोर मौसेरे भाई
पहले जैसे हैं

अगर साँप से पिंड छुटा तो
खड़ा सामने नाग है

बृहन्नला सिंहासन पाए
अचरज काहे का
चेरी भी रानी बन जाए
अचरज काहे का

राम कृष्ण की इस धरती पर
सब कुछ ऊटपटाँग है

- विनय भदौरिया
१० अगस्त २०१५


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