विश्व गगन में गूँज उठे स्वर
भारत माँ की जय के
परिवर्तन का चक्र चला है
स्वप्न पुराने जोश नया है
हर भारतवासी के मन में
निज गौरव का भाव जगा है
निकल चुके हैं सबके मन से
भाव दासता भय के
संघर्षों की अमिट शृंखला
हँसकर सब कष्टों को झेला
सूर्य उगा मुक्ति का आखिर
आई आजादी की वेला
थाम तिरंगा चले वीर सब
गाते गीत विजय के
समझें आजादी की कीमत
इसी हेतु हों सभी समर्पित
एक ही स्वर में घोषित कर दें
सबसे प्रिय हमको है भारत
कभी नहीं होता कुछ हासिल
बिना शक्ति संचय के
आतंकवाद का निर्मम दौर
चला हुआ जग में चहुँ ओर
अखिल विश्व अब देख रहा है
आशा से भारत की ओर
अँगड़ाई लेकर उठ जाएँ
बढ़ें बिना संशय के
- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१० अगस्त २०१५
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