अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
चलो गँवई अपने गाँव
 

बाँध के अपना डोरा डण्डा
चलो गँवई अपने गाँव

राम राज दिल्ली में होगा
सोच तुम्हें भी लाई होगी
परजा राजा परम सुखी सब
तुझको आस बँधाई होगी

कुर्सी-कुर्सी खेल तमाशे
संसद में भी काँव काँव

उलटी पुलटी खाली जेबें
रोटी कपड़ा ठौर नहीं
नहीं नौकरी, मिली चाकरी
ख़त्म ना होती दौड़ कहीं

भूल भुलैयाँ राह भुलाएँ
लौटो घर अब उलटे पाँव

माल मवेशी मोल दिए जो
बिन तेरे कुछ रोते होंगे
दादी को जो सौंप के आये
मिट्ठू रात न सोते होंगे

भली लगे ना काली छतरी
सोहे तुझको बरगद छाँव

चमक दमक तो सोना नाहीं
राम कथा तो बाँची होगी
छले, लुभाये ढोंगी हिरणा
बात यहाँ भी साँची होगी

असली सोना खेत उगाएँ
काहे भटके ठाँव-ठाँव

- शशि पाधा
१० अगस्त २०१५


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter