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बाँध के अपना डोरा डण्डा
चलो गँवई अपने गाँव
राम राज दिल्ली में होगा
सोच तुम्हें भी लाई होगी
परजा राजा परम सुखी सब
तुझको आस बँधाई होगी
कुर्सी-कुर्सी खेल तमाशे
संसद में भी काँव काँव
उलटी पुलटी खाली जेबें
रोटी कपड़ा ठौर नहीं
नहीं नौकरी, मिली चाकरी
ख़त्म ना होती दौड़ कहीं
भूल भुलैयाँ राह भुलाएँ
लौटो घर अब उलटे पाँव
माल मवेशी मोल दिए जो
बिन तेरे कुछ रोते होंगे
दादी को जो सौंप के आये
मिट्ठू रात न सोते होंगे
भली लगे ना काली छतरी
सोहे तुझको बरगद छाँव
चमक दमक तो सोना नाहीं
राम कथा तो बाँची होगी
छले, लुभाये ढोंगी हिरणा
बात यहाँ भी साँची होगी
असली सोना खेत उगाएँ
काहे भटके ठाँव-ठाँव
- शशि पाधा
१० अगस्त २०१५
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