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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
राजा जी का उड़नखटोला
 

राजा जी का उड़नखटोला
आसमान से प्रजा
निहारे

ऊँचाई का लाभ यही है
इक जैसा ही दिखता हर क़द
कुटिया हो या महल दुमहले
घास फूस या
चाहे बरगद

मिटटी से उपजे सब वादे
उड़े हवा में बन
गुब्बारे

तंत्र सयाना हुआ, किन्तु है
लोक अभी भोला का भोला
प्रगतिवाद के नारों में भी
खोज रहा
रोटी का गोला

अंतरिक्ष की सड़कों पर भी
खेत और खलिहान
विचारे

'होगा' 'होने' की दूरी को
ताक रही कब से मुँह बाए
दौड़ रही अनजान सड़क पर
शब्दों की
चट्टी लटकाये

जनता खुद ही पस्त हो रही
राजा जी क्या करें
बिचारे

- सीमा अग्रवाल
१० अगस्त २०१५


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