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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
सोने की चिड़िया
 

घायल है, चोट
किधर किधर लग गयी,
सोने की चिड़िया की
फिकर लग गयी

हौसला गज़ब का था
गज़ब की उड़ान
एक किये रहती थी
धरा आसमान
बड़ी खूबसूरत थी
नज़र लग गयी

गहन अँधेरों में जब
दुनिया घबराती
परों में उजाला भर
रास्ता दिखाती
तभी “विश्वगुरु” वाली
मुहर लग गयी

इतनी तकलीफ़ है कि
कही भी न जाये
बढ़ते ही आते हैं
नफ़रत के साये
प्यार बाँटने में जब
उमर लग गयी

पंख नोचने वालों
रखना ये ध्यान
कुत्ते की मौत
मारे जायेंगे श्वान
भली “शठे–शाठ्यम्” की
डगर लग गयी

– रविशंकर मिश्र “रवि”
१० अगस्त २०१५


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