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जन-जन का है, जन के हेतु, जनों के द्वारा
पर, निरुपाय हुआ जाता
जनतंत्र हमारा!
बड़े जतन से बाहुबली से
सत्ता पायी
बड़े जतन से नयी-नयी
योजना बनायी
किन्तु प्रगति-सरिता गाँवों तक
अभी न पहुँची
नये बाहुबलियों की, देखो
फिर बन आयी
दुर्बल के हित लड़ा, किन्तु सबलों से हारा
कहने को ही रहा सबल
जनतंत्र हमारा!
विधायिका ने भ्रष्टाचारी
फ़सल उगायी
कार्यपालिका की बैठे-
बैठे बन आयी
न्यायपालिका का होना भी
क्या होना है
चतुर मीडिया ने सत्ता की
स्तुति ही गायी
ऐसे में क्यों अपराधी को होगी कारा?
अच्छे दिन को जोह रहा
जनतंत्र हमारा!
- राजेन्द्र वर्मा
१० अगस्त २०१५
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