बना रहे जनतंत्र हमारा
बँधी रहे सपनों की आस
राजनीति के छलछद्म औ'
आतंकों की काली छाया
घोर घोटालों से भी जिसकी
नीव हिला नहिं कोई पाया
वह दुखड़ों से दूर रहे अब
दिल से उठे यही अरदास
जिसकी यादें मन में भरतीं
आशाओं की अमर तरंगें
जिससे बार बार टकरातीं
उत्साहों की तरल उमंगें
जिसको लेकर दुनिया घूमी
उस पर बना रहे विश्वास
- पूर्णिमा वर्मन
१० अगस्त २०१५
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