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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
मुक्त देश हूँ
 

तोड़ शृंखला उच्छ्रंखल हूँ मुक्त देश हूँ
मैं तेरी संप्रभु संस्कृति का
उपनिवेश हूँ

तू तेजस्वी ग्रह, मैं भी देदीप्यमान हूँ
परम आणविक ताकत से भी शक्तिमान हूँ
या कुबेर या रावण का ही हित साधूँगा
नवोत्कर्ष का मैं भी तो
पुष्पक विमान हूँ

ऋद्धि-सिद्धि-संस्कार-विकृति सबको आमंत्रण
पूँजीपतियों के अकूत धन
का निवेश हूँ

मैं अहिंस्र ऋषि के आश्रम का अभय-दान हूँ
बाज! तुझे अर्पण हूँ, शिवि का देह-दान हूँ
हूँ बहुमत की आँधी का ध्वंसक संशोधन
सबकी समता का उद्घोषक
संविधान हूँ

ज्ञान और विज्ञान सभी में अतुलनीय हूँ
गौरवशाली गाथाओं में
कीर्ति-शेष हूँ

मैं शिखंडियों को आगे करके चलता हूँ
बाहुबली होकर भी मैं रण में छलता हूँ
चन्द्रगुप्त हूँ, पर इतना अधिकार कहाँ है
चाणक्यों की रखी हुई चालें
चलता हूँ

अभिधा या लक्षणा, तुम्हें जो भी रुचिकर हो
मैं महानता के गायन का
अर्थ-श्लेष हूँ

औघड़दानी हूँ, भस्मासुर का शंकर हूँ
सिर पर चढ़कर बोलूँगा, पथ का कंकर हूँ
अभी शेष ताकत का भी आह्वान कर रहा
अभी छिपा हूँ मैं खुद में, रण
का बंकर हूँ

मुझमें सम्भावना बहुत है परिवर्तन की
एक दिवस नर हूँ, नारायण
हूँ नरेश हूँ

- पंकज परिमल
१० अगस्त २०१५


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