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सभागार में
रोज़ तमाशा -बंधु बधाई
प्रजातंत्र है
राजपथों पर प्रजाजनॉ के
जाने की है सख़्त मनाही
सभी सुखी हैं -सब समर्थ हैं
नए संत दे रहे गवाही
हाट बिकी मर्यादा सारी
रामराज की फिरी दुहाई
प्रजातंत्र है
सुख-सुविधा के नए आँकड़े
रचे जा रहे रजधानी में
बजा रहे डुगडुगी शाहजी
शहद घुला उनकी बानी में
लूट रहे ठग मिलकर जन को
जिसकी जितनी, बंधु, समाई
प्रजातंत्र है
नौटंकी संसद की अद्भुत
देख रही परजा मुँह-बाये
फ़ैल गए चौखट-ड्योढ़ी तक
महाकोट के अंधे साये
विश्वहाट का शंख बज रहा
'फॉरेन' ऋचा गई है गाई
प्रजातंत्र है
- कुमार रवीन्द्र
१० अगस्त २०१५
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