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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
यह देश है सुघर किसानों का
 

यह दिवस नहीं है दिवस एक
यह दिवस है वीर जवानों का
अलबेलों का मस्तानों का
भारत माँ के रखवालों का

झौंके खाते हैं खेत यहाँ
यह देश है सुघर किसानों का ।

भारत की धरती सतरंगी
भरपूर दिये हैं रंग हमें
हिम खंड बना दरवेश यहाँ
करता रहता है दंग हमें

गंगा,यमुना कोशी,कृष्णा
यह देश है शुभर निनादों का ।

कश्मीर में केशर की क्यारी
रखते है हम सब से यारी
हम देख फिरे संसार जहां
भारत की छवि सबसे न्यारि

खिलती झरनों में स्वर लहरी
यह देश है नव त्योहारों का ।

बापू की अहिंसा से दमकी
भारत माँ की बोझिल छाती
बिन लिए हाथ हथियार कोई
अंग्रेजों ने फांकी माटी

ले चले थे प्राण हथेली पर
यह देश है बस बलिदानों का ।

- कल्पना मिश्रा बाजपेयी
१० अगस्त २०१५


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