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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
भारत का अरमान तिरंगा
 

गुन स्वतंत्रता गान,
तिरंगा लहर लहर लहराया

पिंजड़ा
लेकर उड़ीं चिरैयाँ
जाल काटने लगीं मछलियाँ
क्रूर वधिक के क़त्लगाह से
खूँटे खींच ले गईं गैयाँ

रामदीन के हथ-रिक्शे ने
गति को और बढ़ाया

खूब सज रही झण्डा-झाँकी
किसे खबर पर, दीन-जहाँ की
कब आए, ले गए तकादे
छत उखाड़, गूँगी धनियाँ की

किसने देखा कृपाराम ने
कब-कब हंटर खाया

लाखों जुटे हुए अनुगामी
नमित-शीश दे रहे सलामी
मगर अधर में प्रश्न वही, क्या
हुई नेस्तनाबूद गुलामी?

सड़सठ सावन गुजरे पर क्या
सुखद मेह भी आया?

- कल्पना रामानी
१० अगस्त २०१५


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