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मेरा भारत 
 विश्वजाल पर देश-भक्ति की कविताओं का संकलन 

 
 
ओ मेरे देश !
 

ओ मेरे देश
घृणा द्वेष से दूर
तुम बहते हो
पावन नदी बन
कलकल करते
झारे से

तुम्हारी हवाओं में
घुले हैं प्रेम के रंग
जो छूटते नहीं
तभी तो तुम
विश्व गगन में
चमकते हो
एक सितारे से

हिमालय से
धरा तक तुम
प्रवाहित होते हो
शांति प्रेम प्रगति की
त्रिधारे से

तुम्हारे सूरज से
रोज निकलती है धूप
देश प्रेम की
तभी तो हमे
लगते हो इतने
प्यारे प्यारे से !

- डॉ सरस्वती माथुर
११ अगस्त २०१४


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