पेट से बटुए तलक का
सफर तय करते मुसाफिर
बात तू माने न माने।
देश पर अभिमान करने
के अभी लाखों बहाने।
शीशमहलों राजपथ
जलसाघरों के
मध्य स्थित
जो शिवाले।
श्वेत वस्त्रों में
यहाँ तैनात
जीवन दूत
जिनके हाथ में आले.
जिंदगी की
मौत पर
जय हो सुनिश्चित
हैं अहर्निश यही प्राण ठाने।
शहर होगा
भूख से व्याकुल
निरखती
दूधिये की राह माएं
याद रखता है
अभी भी गांव।
सूट टाई में
अघाई
शख्सियतें अब भी
अदब से
पीर के छूती हैं पांव।
झुर्रियों का कवच पहने
हाथ
देते हैं सभी को
चिर दुआओं के खजाने।
सींकिया तन पर
पहन कर
हरित चूनर स्वर्ण झाले
आज भी फसलें
थिरकतीं झूम
बीहू नृत्य करतीं।
फासलों के उर्ध्वगामी
दौर में भी
पर्व की
गुझियाँ सिवइयां
एकता की थाल में हैं
स्वाद भरतीं।
हैं अभी भी
बेल के कोटर में सुग्गे
चोंच में गौरैया के दाने।
-रामशंकर वर्मा
११ अगस्त २०१४
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