मुझमें
अपनापन बोते हैं
मेरी माटी मेरा देश
हर घास दूब सी है लगती
हर पवन लगे मलयानिल सी
हर रोज़ साथ जगते
सोते हैं
मेरी माटी मेरा देश
हर शहर लगे दिल्ली काशी
हर जन लगता भारतवासी
हर समय साथ रुकते
चलते है
मेरी माटी मेरा देश
हर सागर हिंद महासागर
हर पानी गंगाजल हर हर
हर समय साथ झरते
बहते है
मेरी माटी मेरा देश
हर गीत ऋचा सा बज उठता
मन में केका पीहू जगता
हर समय साथ गुन-गुन
करते हैं
मेरी माटी मेरा देश
हर मौसम गरम और ठंडा
मेरा सूरज मेरा चंदा
हर समय साथ उगते
ढलते हैं
मेरी माटी मेरा देश - पूर्णिमा वर्मन
११ अगस्त २०१४
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