अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

मेरा भारत 
 विश्वजाल पर देश-भक्ति की कविताओं का संकलन 

 
 
माटी अपने देश की
 
इकतारा के स्वर–संग
धुन–निर्गुण गाते दरवेश की।
हमको प्यारी है
सोंधी सी माटी अपने देश की।

गंगा–जमुना के संगम सी
मेल–मिलापों की
यह धरती है
उत्सव, उल्लासों, अपनापों की
पढ़कर देखो
यह है पावन पाती नेह–संदेश की।

रधिया की सौरी में
सोहर गाती है कुलसुम
रामजोहारी का उत्तर है
अस्सलाम अलैकुम
हमें अजेय बनाती एका
जुदा–जुदा परिवेश की।

सरहद के भी पार
शांति का दिया जलाते हैं
धोखा करते नहीं
भले हम धोखे खाते हैं
लुट जायें
पर रख लेते हैं लाज साधु के भेष की।

–कृष्ण नन्दन मौर्य
११ अगस्त २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter