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मेरा भारत
विश्वजाल
पर देश-भक्ति की कविताओं का संकलन
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माटी अपने देश की
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इकतारा के स्वर–संग
धुन–निर्गुण गाते दरवेश की।
हमको प्यारी है
सोंधी सी माटी अपने देश की।
गंगा–जमुना के संगम सी
मेल–मिलापों की
यह धरती है
उत्सव, उल्लासों, अपनापों की
पढ़कर देखो
यह है पावन पाती नेह–संदेश की।
रधिया की सौरी में
सोहर गाती है कुलसुम
रामजोहारी का उत्तर है
अस्सलाम अलैकुम
हमें अजेय बनाती एका
जुदा–जुदा परिवेश की।
सरहद के भी पार
शांति का दिया जलाते हैं
धोखा करते नहीं
भले हम धोखे खाते हैं
लुट जायें
पर रख लेते हैं लाज साधु के भेष की।
–कृष्ण नन्दन मौर्य
११ अगस्त २०१४ |
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