धन्य हुए हम
इस धरती पर मिला जो जनम
शीश मौर है उच्च हिमालय
चरण धुलाये लहरें सागर
पुन्या सलिला गंगा यमुना
तीरथ संगम
शस्य श्यामला पुष्पित अंचल
हरित फलित हैं सारे जंगल
नील गगन पर मन को हरता
पंछी कलरव
गूँजे हरदम
दिव्य भूमि है अवतारों की
तपस्थली है नर नारों की
वेद उपनिषद शाश्वत ज्ञान
अतुलित आगम
बूँद रक्त की श्वासें हरदम
देन उसी की आन बान हित
आहुति प्राणों की
कर्तव्य परम
रोकें मिलकर नफरत का रथ
करें परिश्रम देश प्रगति पथ
विश्व पटल पर खिलें तीन रँग
लहरे परचम
- ज्योतिर्मयी पंत
११ अगस्त २०१४
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