जीत गए हम एक युद्ध तो
एक युद्ध है शेष अभी।
अब हम अपनो के गुलाम हैं
मिटे नही कुछ क्लेश अभी।
हमने अपना नाम लिखा है
सतरंगी अभियानो पर
और प्रगति के ढोल बजाए
चढकर रोज मचानों पर
चाँद छुआ पर देख न पाए
गाँवो का परिवेश अभी।
जहाँ भुखमरी बीन बजाती
गाते नम्बरदार जहाँ
वादे करके कभी दुबारा
गयी नहीं सरकार जहाँ
जनहित की टोपियाँ दे रहीं
जनता को उपदेश अभी।
कागज की नौका पर चढकर
लोगों को तिरते देखा
और पेट भरने को आतुर
मुंह के बल गिरते देखा
सबके भीतर दहक रहा है
चिनगी सा आवेश अभी।
गाँधी जी के तीनो बन्दर
अन्धे गूँगे बहरे हैं
सत्य अहिंसा मानवता पर
कुछ गीधों के पहरे हैं
आओ फिर नेता सुभाष का
दुहराएं सन्देश अभी।
- भारतेन्दु मिश्र
११ अगस्त २०१४
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