शौर्य में सबसे अलग
बलिदान में सबसे खरे
हिन्द के रणबाँकुरे
हम हिन्द के रणबाँकुरे
नीति-मर्यादा समझते हैं
असीमित वीर हम हैं
लक्ष्य में जाकर गड़ें
वे सनसनाते तीर हम हैं
दुष्ट का सर झट कलम
कर दें वही शमशीर हम हैं
अग्निपथ पर भी अडिग
आगे बढ़ें वे धीर हम हैं
सुन कदमतालों की आहट
काँप उठते सरफिरे
किराए के टट्टुओं से
बाग़ियों--घुसपैठियों से
हाथ में थामे तिरंगा
पार पाते मुश्किलों से
मुक्ति के संघर्ष में
जीतें हमेशा शत्रुओं से
शक्तियाँ अब तक अचंभित हैं
हमारे हौसलों से
है किसी में दम जो हमसे
जूझने के ज़िद करे
सियाचिन और कारगिल
गूँजे वही हुंकार हैं
और अरुणाचल
के शिखरों से उठी ललकार हैं
आज़मा लो तुमपे
जितने सामरिक हथियार हैं
थल-गगन-जल
सब कहीं दिग्विजय को तैयार हैं
दुश्मनो ! आओ
ज़रा देखो हमारे पैंतरे !
- अश्विनी कुमार विष्णु
११ अगस्त २०१४
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