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शायद,
विरले ही होते है,वो
तभी तो जन्म लेते है, सदियों में,
कभी-कभार,
तभी,
चाह नहीं होता उन्हें,
किसी सम्मान का,
माँ की ममता की बेड़िया भी,
रोक नहीं पाती उन्हें,
पिता का कठोर अनुशाशन भी,
डिगा नहीं पता उन्हें,
उनके लक्ष्य से,
धन- दौलत की चमक भी,
भ्रमित नहीं कर पाती, उनकी आँखों को,
किसी रूपसी के यौवन का,सम्मोहन भी,
मोहित नहीं कर पाता उन्हें,
शायद,
बहुत विरले ही होते है,वो
तभी,
आकाश सा ऊँचा, होता है उनका कद,
धरती सा गंम्भीर, होता है उनका चित्त,
समुन्द्र सा विशाल, होता है उनका ह्रदय,
मृत्यु का भय भी, भयभीत नहीं कर पाता उन्हें,
तभी
तो छोठी सी आयु में ही,
चढ़ जाते है फाँसी,
हँसते हुए, अपने वतन के लिए,
और दे जाते है,
हमें एक सुनहरा भविष्य,
एक स्वतंत्र देश, स्वतंत्र और खुशहाल जीवन,
शायद,
बहुत विरले ही होते है,वो
तभी
सुनते है हम,उनका नाम,
झूटे और मक्कार नेताओ के भाषणों में,
देखते है उन्हें,
झूटी और मक्कार राजनीतिक पार्टियों के पोस्टरों में,
और याद करते है,उन्हें,
सिर्फ १५ अगस्त और २६ जनवरी वाले दिन,
फिर भूल जाते है, उन्हें,
संजय सिंह 'भारतीय'
१३ अगस्त २०१२
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