|
मेरे देश तुझको मेरा नमन
कितनी सुहानी धरती तेरी
पावन तेरा गगन।
मंत्रों सी पावन धरती है,
सबका अभिनन्दन करती है,
जीवन की साँसे हैं सबमें,
जड़ हो या चेतन
पवन तेरी है चंचल–चंचल,
गीत सुनाये मंगल-मंगल,
हर मौसम खुशियों का मौसम,
पतझड़ या सावन
खिलती हुई कली ना तोडें,
अपनों को अपनों से जोड़ें,
महकाना है उपवन अपना,
अपना ये आँगन
ना हो भाषा राग-द्वेष की,
बोली मीठी प्रेम-देश की,
लोभ, निराशा, स्वार्थ, तिकड़में,
आज करें तर्पण
अपना देश है अपना साथी,
जैसे एक दीया और बाती,
चलो किरण बन जाएँ हम तुम,
दुनिया हो रोशन
-रोहित रुसिया
१३ अगस्त २०१२
|