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भाल पे मुकुट हिमगिर जैसा पहना है,
जो कि सब वैरियोँ के दम्भ को उखाडता,
राम और कृष्ण ने चुना था जिसे जन्मभूमि,
पावन धरा को हर देवता निहारता।
बार-बार अंजलि मेँ ज्वार और भाटा डाल,
हिन्द महासागर है चरण पखारता,
विश्वगुरु बन कर भारत है सर्वश्रेष्ठ,
जिसकी समूचा विश्व आरती उतारता।
गंगा-यमुना की धारा आँचल बना के ओढी,
जो कि माता भारती के रूप को निखारती,
कल-कल स्वर कर दौडतीँ हैँ अविरल,
भारती के स्यामल शरीर को सँवारती।
पुरवाई की बयार लेकर बहार आती,
अंग-अंग भारती का वेग से बुहारती,
जिसने है ध्रुव-एकलव्य को जनम दिया,
ऐसी मात भारती की बार-बार आरती।
बिस्मिल भगत व आजाद जैसे बेटे दिए,
जिनका कि साहस अदम्य मानता हूँ मैँ,
लाल बाल पाल जैसे प्रेरणा के स्रोत मिले,
अशफाक टीपू को प्रणम्य मानता हूँ मैँ।
लेखनी से लिखे हैँ अंगार यहाँ कवियों ने,
'मेघ' को तो ऐसे मेँ नगण्य मानता हूँ मैँ,
भारत का बेटा कहलाने का जो हक पाया,
खुद को अनन्य कोटि धन्य मानता हूँ मैँ।
मेघश्याम मेघ
१३ अगस्त २०१२
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