|
देना माँ अनुपम उपहार
मेरे भारत को तुम देना, खुशियाँ अपरम्पार
मिटटी, अंबर,
आग, हवा, जल, में माँ नहीं जहर हो,
सूखा, वर्षा, बाढ़, सुनामी का माँ नहीं कहर हो,
ऋतुएँ, नवग्रह, सात स्वरों की हम पर खूब महर हो,
धरती ओढ़े चूनर धानी,
ढाणी, गाँव, शहर हो,
दसों दिशाओं का कर देना, अदभुत सा शृंगार
मेरे भारत को तुम देना, खुशियाँ अपरम्पार
शब्दों के
साधक को देना, भाव भरा इक बस्ता
मुफलिस से माँ दूर करो तुम, कष्टों भरी विवशता
तितली गुल भवरों को देखें, हरदम हँसता हँसता
दहशतगर्दों के हाथों में
भी दे माँ गुलदस्ता
कल कल करती माँ गंगा फिर, मुस्काये हर बार
मेरे भारत को तुम देना, खुशियाँ अपरम्पार
मंदिर के
टंकारे से, निकले स्वर यहाँ अजान के
मस्जिद की मीनारें गाएँ नगमें गीता ज्ञान के
मिलकर हम त्यौहार मनाएँ, होली के रमजान के
दुनिया को हम चित्र दिखाएँ
ऐसे हिन्दुस्तान के
अमन चैन भाई चारे की, होती रहे फुहार
मेरे भारत को तुम देना, खुशियाँ अपरम्पार
किशोर पारीक “किशोर”
१३ अगस्त २०१२
|