हम भारत के
वीर बाँकुरे‚ खेलें अपनी जान पर।
जन्म दिया है‚ प्राण भी देंगे‚ अपने हिन्दुस्तान पर।।
1
साक्षी है इतिहास हमारा‚ हमने गति को मोडा है।
बनकर अभिमन्यु ही हमने चक्रव्यूह को तोडा है।।
धरती से आकाश तलक हम तूफानों में चले अकेले।
दुर्गमघाटी‚ सिन्धु–लहरियाँ‚ मैदानों में रहे अकेले।।
हमने बँटवारे
भी झेले‚ राष्ट्रपिता की आन पर।
लेकिन‚ आँच नहीं आने दी‚ भारत माँ की शान पर।।
1
आज देश की सीमाओं पर‚ विषधर ने फुंकारा है।
प्राण असंख्य लिए है जिसने वह हिंसक–हत्यारा है।।
भारत की सीमा–यमुना को‚ इससे मुक्त कराना है।
पाक–नाग को बन वंशीधर‚ उससे दूर भगाना है।
किसमें साहस
आँख उठाये‚ भारत के सम्मान पर।
बच्चा–बच्चा कृष्ण यहाँ का‚ मिट जाता मुस्कान पर।।
1
हम गंगा–यमुना के बेटे‚ युद्ध अनेकों झेले
हैं।
राम–कृष्ण की मातृभूमि पर‚ बलिदानों के मेले हैं।।
अमित किए प्रयास किन्तु यह नही आज तक टूटी है।
इसकी रग–रग में चन्दन है‚ बने गरल भी घूटी है।।
है अनुपम
माताएँ बहिनें‚ जौहर करती मान पर।
बडे हठीले वीर यहाँ के‚ हँसते है बलिदान पर।।
1
--डा महेश दिवाकर
१३ अगस्त २०१२
|