अपना देश
अपना वतन
अपनी इसकी भाषा
सिख ईसाई हिंदू मुसलिम
गढ़ते इसकी परिभाषा
उदित भाग्य
विकसित राष्ट्र जनगण इसकी थाती
विज्ञान ज्ञान के उपवन में पुलकित हर भारतवासी
संबल शास्त्र
संगठित अर्थ का हो रहा विश्व गान
पावन राष्ट्र विकास का गूँज रहा गुणगान
सूचना स्वर
युग मधुर अधर
हरित क्रांति
की हरियाली बरस रही
घर घर
लोकतंत्र के मंदिर से जागे
जग में मंगल प्रभात
ज्ञान मुखर हो
कर्म मुखर हो
बहे स्वदेश प्रेम प्रपात
ब्रजेश कुमार
शुक्ल
१३ अगस्त २०१२ |