सप्तधाराएँ जिसे पावन करें
हम सदा इस भूमि का वन्दन करें !
कर्म ही संकल्प
श्रम ही धर्म है
सब सुखी हों
लोकमंगल मर्म है
मन-वचन इस रीत का पालन करें !
नित्य जो रचते
नए रणक्षेत्र हैं
उन सभी के लिए
शिव के नेत्र हैं
हम लपट को भाल का चन्दन करें !
रत्न हम धन-
धान्य के भंडार हम
अब नहीं मजबूर
और लाचार हम
चाँद - तारों में ध्वजारोहण करें !
- अश्विनी कुमार विष्णु
१३ अगस्त २०१२
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