अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ममतामयी
विश्वजाल पर माँ को समर्पित कविताओं का संकलन

 

माँ की याद

चीटियाँ अंडे उठा कर जा रही हैं
और चिड़ियाँ नीड़ को चारा दबाए
थान पर बछड़ा रंभाने लग गया है
टकटकी सूने विजन पथ पर लगाए

थाम आँचल थका बालक रो उठा है
है खड़ी माँ शीश का गट्ठर गिराए
बाँह दो चुमकारती-सी बढ़ रही हैं
साँझ से कह दो बुझे दीपक जलाए

शोर डैनों में छिपाने के लिए अब
शोर माँ की गोद जाने के लिए अब
शोर घर-घर नींद रानी के लिए अब
शोर परियों की कहानी के लिए अब

एक मैं ही हूँ कि मेरी साँझ चुप है
एक मेरे दीप में ही बल नहीं है
एक मेरी खाट का विस्तार नभ-सा
क्यों कि मेरे शीश पर आँचल नहीं है

- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


स्रोत : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना 'प्रतिनिधि कविताएँ'
राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, १बी-नेताजी सुभाषचंद्र मार्ग
नयी दिल्ली ११० ०३२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter