कितनी करुणा भरी हुई है माँ के पावन प्यार में
माँ-सम अमृतानन्द न कोई इस नश्वर संसार में
अम्मा के अनमोल बोल तो मर्म ब्रह्म का खोलते
माँ की मंगलमय वाणी से स्वयं वेद ही बोलते
झर-झर झरता अमृत लोक-हित अम्मा के उच्चार में
माँ-सम अमृतानन्द न कोई इस नश्वर संसार में
चाहे कोई भी हो, जो भी माँ के सम्मुख हो गया
पाकर प्रेमलोक, अज्ञता-शोक उसी का खो गया
शेष न संशय भवसागर से उस जन के उद्धार में
माँ-सम अमृतानन्द न कोई इस नश्वर संसार में
बन जाते हैं सुमन कुमन भी माँ के उर्मिल प्यार से
ताप स्वयं शीतल हो जाते प्रेम भरे उपचार से
अशरण को भी शरण मिली है अम्मा के दरबार में
माँ-सम अमृतानन्द न कोई इस नश्वर संसार में
भरा हुआ अम्मा में सागर ज्ञान और विज्ञान का
मिल जाता है मार्ग सभी को सहज आत्मसंधान का
भाव-सुमन खिलते हैं उनके प्रेमिल पुण्य विचार में
माँ-सम अमृतानन्द न कोई इस नश्वर संसार में
अम्मा में है तेज राम का और प्रेम घनश्याम का
जो न हुआ घनश्याम राम का वह जीवन किस काम का
है 'मधुरेश' प्रवेश सभी का अम्मा के संसार में
माँ-सम अमृतानन्द न कोई इस नश्वर संसार में
-भानुदत्त त्रिपाठी मधुरेश
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