हज़ारों दुखड़े सहती है माँ
फिर भी कुछ ना कहती है माँ
हमारा बेटा फले औ' फूले
यही तो मंतर पढ़ती है माँ
हमारे कपड़े कलम औ' कॉपी
बड़े जतन से रखती है माँ
बना रहे घर बँटे न आँगन
इसी से सबकी सहती है माँ
रहे सलामत चिराग घर का
यही दुआ बस करती है माँ
बढ़े उदासी मन में जब जब
बहुत याद में रहती है माँ
नज़र का कांटा कहते हैं सब
जिगर का टुकड़ा कहती है माँ
मनोज मेरे हृदय में हरदम
ईश्वर जैसी रहती है माँ
- मनोज 'भावुक'
(भोजपुरी ग़ज़ल का हिंदी रूपांतर)
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