माँ
इसके पहले कि
हम सम्हालते उसे
उसने सम्हाला हमें।
भरकर हम चारों को
अपनी ही बाहों में
कहा उसने - क्यों रोते हो
मैं जो हूँ अभी।
और जो माँ अब तक
पृथ्वी थी हमारे लिए
वह बन गई आकाश भी।
-क्रांति
माँ
माँ है
तो लोरी है। शगुन है
माँ है
तो गीत है। उत्सव है
माँ है
तो मंदिर है। मोक्ष है
माँ है
तो मुमकिन है शहंशाह होना,
माँ के आँचल से बड़ा
दुनिया में कोई साम्राज्य नहीं।
-डॉ. सरोज कुमार वर्मा
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