अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ज्ञान का वरदान दे माँ!

 

 

 

ज्ञान का वरदान दे माँ
शक्ति दे सौभाग्य दे
मात दुर्गे जगत को
धन धान्य से परिपूर्ण कर

धरा, नदियाँ, जनयत्री, से
माँगते ही हम रहे
पूजते हैं कम तुझे माँ
दुख सदा अपने कहे
रीत देने की सिखाकर
माँ हमें सम्पूर्ण कर

शुभ्र मन शुचिता ह्रदय की
माँ तुझे अर्पण करें
जो धरोहर हैं मिलीं सब
हम सहेजें ओ रखें
संकुचित सीमाएँ मन की
माँ सभी विस्तीर्ण कर

फिर ह्रदय में आज माँ हो
कालिका बन अवतरित
मन विकारो को समूचा
नाश कर दे तू त्वरित
सत्य की हर परीक्षा में
माँ हमें उत्तीर्ण कर

- सीमा हरि शर्मा
१५ अक्तूबर २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter