जागो माँ!, जागो माँ!
सघन तिमिर आया घिर
तूफाँ है हावी फिर
गौरैया घायल है
नष्ट हुए जंगल झिर
बेबस है राम आज
रजक मिल उठाये सिर।
जनमत की सीता को
निष्ठा से पागो माँ
जागो माँ!, जागो माँ!
शकुनि नित दाँव चले
कृष्णा को छाँव छले
शहरों में आग लगा
हाथ सेंक गाँव जले
कलप रही सत्यवती
बेच घाट-नाव पले।
पद-मद के दानव को
मार-मार दागो माँ
जागो माँ!, जागो माँ!
करतल-करताल लिये
रख ऊँचा भाल हिये
जस गाते झूम अधर
मन-आँगन बाल दिये
घंटा-ध्वनि होने दो
पंचामृत जगत पिये।
प्राणों को खुद से भी
ज्यादा प्रिय लागो माँ!
जागो माँ!, जागो माँ!
- संजीव वर्मा सलिल
१५ अक्तूबर २०१५ |